भारतीय-मिट्टी-के-प्रकार

भारतीय मिट्टी के प्रकार | INDIAN SOIL TYPES

भारतीय मिट्टी एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है। मिट्टी या मृदा शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द सोलम से हुई है,जिसका अर्थ है ‘फर्श’। प्रकृति में उपलब्ध मृदा पर कई कारकों का प्रभाव होता है,जैसे –मूल पदार्थ,धरातलीय दशा,जलवायु एवं प्राकृतिक वनस्पति आदि । मिट्टी भू – पर्पटी की सबसे महत्त्वपूर्ण परत है। हमारे भोजन और वस्त्र, मिट्टी में उगने वाले भूमि आधारित फसलों से प्राप्त होते है।

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भारतीय मिट्टी के प्रकार | INDIAN SOIL TYPES : भारतीय मिट्टी के गुण एवं भाग 

मिट्टी शैल,मलवाऔर जैव सामग्री का मिश्रण होता है, जो पृथ्वीकी सतह पर विकसित होते है । मिट्टी के घटक खनिज कण,ह्यूमस ,जल,एवं वायु होते है । प्राचीन काल में मिट्टी को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता था – उर्वर (उपजाऊ भूमि) एवं ऊसर (अनुर्वर) होती थी । गठन के आधार पर मिट्टी के प्रमुख प्रकार जैसे बलुई,मृण्मय,पांशु आदि।

भारतीय मिट्टी के प्रकार | INDIAN SOIL TYPES : उत्पत्ति रंग,संयोजन,एवं अवस्थिति के आधार पर भारत की मिट्टियों को निम्न प्रकारों विभाजित किया गया है –

  1. जलोढ़ मिट्टी
  2. काली मिट्टी
  3. लाल एवं पीली मिट्टी
  4. लैटेराइट मिट्टी
  5. शुष्क एवं मरुषथलीय मिट्टी
  6. लवणीय मिट्टी
  7. पीटमय मिट्टी
  8. पर्वतीय या वनीय मिट्टी

1. जलोढ़ मिट्टी –

  • भारत में जलोढ़ मिट्टी उत्तरी मैदान एवं नदी घाटियों के विस्तृत क्षेत्रों में पाए जाती है।
  • यह मिट्टी देश के 40% क्षेत्रों मे विस्तृत है।
  • यह मिट्टी नदी एवं सरिता के द्वारा निक्षेपित की गई होती है।
  • जलोढ़ मिट्टी राजस्थान के एक सँकरे रास्ते से होती हुई गुजरात के मैदान में फैली हुई मिलती है।
  • यह मिट्टी दक्षिण भारत में पूर्वीतट की नदियों के डेल्टा और उनकी घाटियों में पाई जाती है।
  • इस मिट्टी को भू- गर्भ शास्त्र के आधार पर बांगर एवं खादर में बाँटा जाता है।
  • बांगर मिट्टी – इस मिट्टी को “प्राचीन जलोढ़क” भी कहा जाता है,क्योंकि इसमें कंकड़ एवं कैल्शियम कार्बोनेट की मात्र पाई जाती है,यह मिट्टी काले रंग की होती होती है । इस मिट्टी काविस्तार बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों में पाया जाता है ।
  • खादर मिट्टी – नवीन जलोढ़ मिट्टी को खादर मिट्टी कहा जाता है, यह प्रति वर्ष बाढ़ द्वारा लाई गई मिट्टी होती है,यह मिट्टी बांगर की अपेक्षा अधिक उपजाऊ होती है,इस मिट्टी मे नाइट्रोजनऔर ह्यूमस की कमी पाई जाती है।
  • जलोढ़ मिट्टी धान,गेहूं,गन्ना,दलहन एवं तिलहन आदि की खेती के लिए उपयुक्त है।
  • जलोढ़ मिट्टी पोटाश,फास्फोरिक अम्ल,चूना व कार्बनिक तत्वों में धनी होते है।

2. काली मिट्टी –

  • काली मिट्टी दक्षिण भारत में दक्कन के पठार के अधिक विस्तृत क्षेत्रों पर पाई जाती है।
  • यह मिट्टी दक्कन मे शामिल महाराष्ट्र के कुछ भाग,गुजरात,आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु है।
  • काली मिट्टी को रेगुर मिट्टी या कपासी मिट्टी भी कहा जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय रूप से इसे उष्ण कटिबंधीय चरनोजम भी कहा जाता है।
  • इस मिट्टी का रंग काला होता है।
  • यह मिट्टी 12से 25उत्तरी अक्षांश एवं 37 से 80पूर्वी देशान्तरों के मध्य पाई जाती है।
  • इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी लावा के अपक्षय व निक्षेपण से हुआ है।
  • काली मिट्टी में मैगनेटाइट,लोहा,एल्यूमिनियम,सिलिकेट एवं ह्यूमस आदि की उपस्थिति के कारण इस मिट्टी का रंग होता है।
  • इस मिट्टी में नमी होने के कारण चिपचिपी एवं शुष्क होने पर दरारें पड़ जाती है, जिसके कारण इसे जुताई वाली मिट्टी या स्वतः कृष्ण मिट्टी भी कहा जाता है।
  • इस मिट्टी में कपास, मोटे अनाज, तिलहन,सूर्यमुखी, अंडी,सब्जियां एवं खट्टे फल की कृषि होती है।
  • इसमें लोहा,चुना,पोटाश, एल्यूमिनियम,कैल्शियम,व मैग्नीशियम आदि की प्रचुर मात्रा पाई जाती है ।
  • काली मिट्टी में नाइट्रोजन,फास्फोरस,व कार्बनिक तत्वों की कमी पाई जाती है।

3. लाल मिट्टी या पीली मिट्टी –

  • लाल मिट्टी का विकास दक्कन पठार के पूर्वी एवं दक्षिणी भाग में कम वर्षा वाले क्षेत्रों में हुआ है।
  • यह मिट्टी पश्चिमी घाट के गिरिपाद क्षेत्र में एक लंबी पट्टी के आकार में फैली हुई है ।
  • लाल एवं पीली मिट्टी ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ के कुछ भागों में भी पाई जाती है।
  • इसमें लौह तत्व की व्यापकता के कारण इसका रंग लाल होता है।
  • इसमें सतह का रंग लाल होता है, एवं नीचे जाने जाने पर इसका रंग पीला मिलता है ।
  • यह मिट्टी चावल, रागी, तंबाकू एवं सब्जियों की खेती होती है।

4. लैटेराइट मिट्टी

  • लैटेराइट शब्द एक लैटिन शब्द ‘लेटर’ से बना है,जिसका शाब्दिक अर्थ ईंट होता है ।
  • लैटेराइट मिट्टी उच्च तापमान एवं भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होती है।
  • इस मिट्टी का अध्ययन सर्वप्रथम एफ. बुकानन द्वरा 1905 में किया गया ।
  • यह मिट्टी भीगने पर कोमल एवं सूखने पर कठोर हो जाती है।
  • यह मिट्टी सह्याद्रि,पूर्वी घाट, राजमहल पहाड़ियाँ,सतपुड़ा, असम एवं मेघालय की पहाड़ियों के शिखरों पर पाई जाती है ।
  • इस मिट्टी में लौह ऑक्साइड व एल्यूमिनियम की प्रचुर मात्रा पाई जाती है।
  • इस मिट्टी में रागी ,काजू आदि की खेती होती है ।

5. शुष्क एवं मरुषथलीय मिट्टी

  • इस मिट्टी का विस्तार शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों में अरावली पर्वत और सिंधु घाटी के मध्यवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी राजस्थान,उत्तरी गुजरात, एवं दक्षिणी हरियाणा में मिलता है ।
  • इस मिट्टी में बालू की मात्रा पाई जाती है।
  • इसमें मोटे अनाज की खेती होती है ।
  • शुष्क मिट्टी में ह्यूमस व जैव पदार्थों की कमी पाई जाती है, जिसके कारण यह अनुर्वर श्रेणी में सम्मिलित की जाती है ।
  • इस मिट्टी में घुलनशील लवण एवं फास्फोरस की मात्रा अधिक होती है 

6. लवणीय मिट्टी –

  • इस प्रकार की मिट्टी को ऊसर मिट्टी कहा जाता है ।
  • इस मिट्टी मे सोडियम, पोटैशियम एवं मैग्नीशियम का अनुपात ज्यादा होता है।
  • लवणीय मिट्टी अनुर्वर होती है ।
  • इस प्रकार की मिट्टी मे किसी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती है।
  • इस मिट्टी का विस्तार राजस्थान, पंजाब, हरियाणा,उत्तर प्रदेश,बिहार,महाराष्ट्र आदि में है ।
  • लवणीय मिट्टी का स्थानीय नाम – रेह, कल्लर, रकार, ऊसर, कार्ल, चॉपेन आदि है ।
  • इस मिट्टी में चूना अथवा जिप्सम मिलाकर चावल, गेहूँ, गन्ना, कपास आदि उगाया जाता है ।

7. पीटमय मिट्टी

  • यह मिट्टी अत्यधिक वर्षा एवं उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में पाई जाती है ।
  • पीटमय मिट्टी में वनस्पति की अधिकता होती है।
  • इस मिट्टी में जैव पदार्थों का जमाव बहुत अधिक होता है।
  • पीटमय मिट्टी में फास्फोरस व पोटाश की कमी होती है ।
  • यह मिट्टी खेती के लिए उपयोगी नहीं होती है।
  • पीटमय मिट्टी सामान्यतः काले रंग की होती है।
  • यह मिट्टी मुख्य रूप से बिहार के उत्तरी भाग,उत्तराखंड के दक्षिणी भाग,पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्रों आदि में पाई जाती है ।

8. पर्वतीय मिट्टी –

  • इस मिट्टी को वनीय मिट्टी कहा जाता है ।
  • यह मिट्टी हिमालय के घाटियों में ढलानों पर 2700 से 3000 मीटर की ऊँचाई पर पाई जाती है ।
  • पर्वतीय मिट्टी में ह्यूमस की अधिकता के कारण यह अम्लीय गुण रखती है।
  • पर्वतीय मिट्टी को कृषि योग्य बनाने के लिए उर्वरक डालने की आवश्यकता पड़ती है ।
  • इस मिट्टी चाय,कॉफी, मसाले की खेती संभव होती है ।
  • यह मिट्टी कर्नाटक,तमिलनाडु,केरल आदि में पाई जाती है।

मिट्टी अवकर्षण

  • मिट्टी की अवकर्षण को मृदा की उर्वरता में कमी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • इसमें मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है ।
  • भारत मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारक मृदा अवकर्षण है ।
  • मृदा अवकर्षणकी डर भू –आकृति पवनों की गति एवं वर्षा की मात्रा के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होती है ।

मृदा अपरदन –

  • मृदा के आवरण का नष्ट होना मृदा अपरदन कहलाता है।
  • मृदा अपरदन की क्रिया पवनों एवं बहते हुए जल के कारण होता है ।
  • मृदा अपरदन के मानवीय गतिविधियां भी काफी हद टक जिम्मेदार है ।
  • पवन द्वारा मृदा अपरदन शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में होता है ।
  • भारी वर्षा द्वारा अपरदन खड़ी ढालों वालें क्षेत्रों में होता है ।
  • मृदा अपरदन भारतीय कृषि के लिए एक गंभीर समस्या है ।
  • वनोन्मूलन, मृदा अपरदन के प्रमुख कारणो मे से एक हैं। पौधे की जड़े मृदा को बांध के रखती है।

मृदा संरक्षण –

  • यदि मृदा अपरदन एवं मृदा क्षय मानव के द्वारा किया जाता है, तो मानव के द्वारा रोक जा सकता है।
  • मृदा संरक्षण एक विधि है,जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जा सकती है।
  • मृदा अपरदन को रोकने के लिए ढलानों वाली मृदा पर सीढ़ीदार खेत बनाकर खेती करनी चाहिए ।
  • भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अति चराई एवं स्थानतरित कृषि ने भूमि के प्राकृतिक आवरण को दुष्प्रभावित किया है, ग्राम वासियों के इसके दुष्परिणामों से अवगत कराएं ।
  • समोच्च रेखा के अनुसार मेढबन्दी, समोच्च सीढ़ीदार खेत बनाना, नियमित वानिकी, नियंत्रित चराई आदि ।

Q. मिट्टियाँ कितने प्रकार की होती है ?

A. भारत में 8 प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती है ।

Q. लैटराइट मृदा का दूसरा नाम क्या है ?

A. लैटराइट शब्द लैटिन भाषा के ‘लेटर’ शब्द से बना है । यह मिट्टी उच्च तापमान एवं भारी वर्षा के क्षेत्रों में पाई जाती है । इस मिट्टी में रागी और काजू की खेती होती है ।

Q. जलोढ़ मिट्टी भारत के कितने क्षेत्रफल पर पाई जाती है ?

A. जलोढ़ मिट्टी भारत के 40 % क्षेत्रों पर पाई जाती है ।

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