आधुनिक युग की मीरा के नाम से विख्यात श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907ई० को होली के दिन फर्रुखाबाद(उत्तर प्रदेश) में हुआ था। सात पीढ़ियों के पश्चात प्रथम बार पुत्री का जन्म हुआ था। जिससे इनके बाबा खुशी इनको घर की देवी-महादेवी मानते नाम माह देवी रखा। इनकी माता जी का नाम श्रीमती हेमरानी था।पिता जी का नाम श्री गोविंद सहाय वर्मा था। इनके पिता जी इंदौर के एक कालेज में अध्यापक थे। माता जी सरल हृदय एवं धर्मपरायण महिला थी।
Table of Contents
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
नाम | महादेवी वर्मा |
उपनाम | आधुनिक मीरा |
जन्म एवं स्थान | 26 मार्च 1907ई. को फर्रुखाबाद |
पिता का नाम | श्री गोविंद सहाय |
माता का नाम | श्रीमती हेमरानी |
शिक्षा | एम.ए. संस्कृत |
सम्पादन | चाँद (पत्र) |
भाषा | ब्रजभाषा एवं खड़ी बोली |
शैली | मुक्तक,चित्र,प्रगीत, ध्वन्यात्मक,सम्बोधन प्रश्न। |
प्रमुख रचनाएं | हिमालय, मेरा परिवार,यामा, अतीत आदि। |
सदस्य | उत्तर प्रदेश विधान परिषद |
मृत्यु | 11 सितंबर 1987ई. |
महादेवी वर्मा की शिक्षा
आधुनिक युग की मीरा कही जाने वाली श्रीमतीवर्मा जी बचपन से बहुत ही कुशाग्र बुद्धि की थी। इनकी शिक्षा इंदौर से मिशन स्कूल से शुरू हुई।इनको संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत एवं चित्रकला की शिक्षा घर पर ही दी जाती थी। वर्ष 1921ई. में कक्षा-8 की परीक्षा में पूरे प्रांत में में प्रथम स्थान में उत्तीर्ण की थी। वर्ष 1925ई. में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1932ई. प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए की शिक्षा ग्रहण के पश्चात ये महिला विद्यापीठ में संस्कृत की प्राचार्या हो गई। सात वर्ष की आयु से कविता लिखना प्रारंभ कर दिया था। एम.ए. करते-करते इनकी दो कविता संग्रह निहार एवं रश्मि प्रकाशित हो गए थे।
वैवाहिक जीवन
श्रीमती वर्मा जी का विवाह छोटी उम्र में ही वर्ष 1916ई. में बरेली के नजदीक नवाबगंज के रहने वाले श्री रूप नारायण वर्मा के साथ हुआ था।इनके पति श्री रूप नारायण वर्मा जी पेशे से डॉक्टर थे। वर्मा जी का दाम्पत्य जीवन में रुचि नहीं थी। श्री रूप नारायण कभी-कभार इनसे मिलने इलाहाबाद आया करते थे।
कार्यक्षेत्र
इनका कार्यक्षेत्र लेखन, सम्पादन एवं अध्यापन था। इन्होंने प्रयाग में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में प्रमुख योगदान किया। यह कार्य अपने उस समय में महिला शिक्षा क्षेत्र में एक क्रान्तिकारी पहल थी।
इन्होंने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नीव रखी। प्रथम अखिल भारत वर्षीय कवि सम्मेलन 15 अप्रैल 1933 को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ में सम्पन्न हुआ था।
1936 में नैनीताल से 25 किमीदूर रामगढ़ के उमगढ़ गाँव में एक बंगला का निर्माण करवाया था। जिसका नाम उन्होंने मीरा मंदिर रखा था। जितना समय वह यहाँ पर थी, इस छोटे से गाँव में महिलाओं की शिक्षा एवं आर्थिक निर्भरता का विकास किया।
महिलाओं एवं शिक्षा के सुधार में जो नित्य काम किये, इसके लिए इन्हे समाज सुधारक भी कहा जाता है।
पुरस्कार एवं सम्मान
श्रीमती वर्माजी को प्रशासनिक एवं अर्ध-प्रशासनिक तथा व्यक्तिगत सभी संस्थाओं से अवार्ड एवं सम्मान मिला है।
- 1943ई. उनको मंगलाप्रसाद पारतोषिक एवं भारत भर्ती पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
- 1952 में उनको विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया।
- 1956ई. में उनको भारत सरकार ने पद्म भूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया।
- विक्रम विश्वविद्यालय, कुमाऊँ विश्वविद्यालय एवं अन्य कई विश्वविद्यालय के द्वारा उनको डी.लिट की उपाधि प्रदान की है।
- 1934ई. में नीरजा के लिए सकसेरिया पुरस्कार, 1942ई. में स्मृति रेखाएं के लिए द्विवेदी पदक प्राप्त हुए।
- यामा के लिए उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार ज्ञानपीठ प्राप्त हुआ।
देहावसान(मृत्यु)
इनका देहावसान 11सितम्बर,1987 को प्रयाग जो इस प्रयागराज है में हुई थी। यह हिन्दी भाषा की एक प्रसिद्ध कवयित्री है। महिलाओं को आत्मनिर्भर एवं उनकी शिक्षा के लिए हमेशा ततपर रही।
काव्य के प्रति साधना
इनका आधुनिक हिन्दी साहित्य के निर्माताओं में महत्त्वपूर्ण स्थान है।इन्हें छायावाद-युग की कवियों में से चतुष्टय के नाम से भी जाना जाता है।
काव्य में करुणा एवं भावुकता उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग थे। इनके संपर्क में आने वाले पीड़ित एवं दुखी व्यक्तियों को भी प्रेम एवं सहानुभूति से भी प्रभावित करती थी।
इनके द्वारा रचित काव्य रहस्यवाद,वेदना,एवं सूक्ष्म अनुभूतियों के लिए कोमल तथा मर्मस्पर्शी भाव मुखरित हुए।
भाषा शैली
इनका पूरा काव्य गीतात्मक शैली में है। इनके गीत काव्य की दो प्रमुख भाषा शैली मिलती है। 1. चित्र शैली 2. गीतात्मक शैली।
चित्र शैली | गीतात्मक शैली |
इस शैली के अंतर्गत इन्होंने संध्या एवं रात के समय को चित्रित किया है।प्रतीकों के द्वारा वढ़ वेदना को दर्शाया है। | इस शैली के अंतर्गत सरस गीतों की रचना की है। जिसमें वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। अपने गीतों में असीम, अगोचर, प्रिय ईश्वर के प्रति प्रेम किया है। |
इनकी प्रारम्भिक काव्य रचनाए ब्रजभाषा में है। परंतु बाद में इन्होंने खड़ी बोली पर साहित्य सृजन किया। इनकी खड़ी बोली शुद्ध, मधुर, एवं कोमल है।
भाषा शैली में संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है। भाषा को मधुर एवं कोमल बनाने के लिए कहीं-कहीं शब्दों में परिवर्तन किया गया है। सूक्ष्म भावनाओं का चित्रण होने के कारण इनकी भाषा में सांकेतिक एवं संवेदना युक्त है।
रचनाएं
महादेवी जी ने काव्य ग्रंथ एवं गद्य ग्रंथ दोनों में रचनाएं लिखी है-
काव्य रचनाएं
- इनकी प्रमुख रचनाओं में से नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, दीपशिखा, यामा, हिमालय आदि।
गद्य रचनाएं
- इनकी गद्य रचनाएं जैसे – अतीत के चलचित्र, स्मृत की रेखाएं, शृंखला की कड़िया, पथ के साथी आदि।
आप इसे भी पढ़ें
Munshi premchand ka jeevan parichay
FAQ
Q.महादेवी वर्मा की शिक्षा दीक्षा कहाँ हुई?
A.यह बचपन से बहुत ही कुशाग्र बुद्धि की थी। इनकी शिक्षा इंदौर से मिशन स्कूल से शुरू हुई।इनको संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत एवं चित्रकला की शिक्षा घर पर ही दी जाती थी।
Q.महादेवी वर्मा की पहली रचना कौन सी है?
A.इनकी प्रथम काव्य रचना नीहार है, जो इन्होंने 1930 में रचना किया था।
Q.महादेवी वर्माकिस युग की लेखिका है?
A.इनको छायावाद युग की लेखिका है।
Q.महादेवी वर्मा को क्या कहा जाता है?
A.आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है।
महादेवी वर्मा किस युग की लेखिका है?
महादेवी वर्मा जी छायावाद युग की लेखिका है।
महादेवी वर्मा की शिक्षा दीक्षा कहाँ हुई?
श्रीमती महादेवी वर्मा जी बचपन से बहुत ही कुशाग्र बुद्धि की थी। इनकी शिक्षा इंदौर से मिशन स्कूल से शुरू हुई।इनको संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत एवं चित्रकला की शिक्षा घर पर ही दी जाती थी।
महादेवी वर्मा की पहली रचना कौन सी है?
महादेवी वर्मा की प्रथम काव्य रचना नीहार है, जो इन्होंने 1930 में रचना किया था।
महादेवी वर्मा को क्या कहा जाता है?
आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है।