भारतीय चट्टानों का वर्गीकरण

भारतीय चट्टानों का वर्गीकरण

भारतीय चट्टानें भारत के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। क्योंकि इन्ही चट्टानों से अपार मात्रा में खनिज संपदा जैसे तेल, कोयला, धातु,पत्थर जैसे –मार्बलस आदि बहुत ही उपयोगी वस्तुएं प्राप्त होती है । भारतीय चट्टानों का  हम  बहुत ही बेहतरीन ढंग से अध्ययन की दृष्टि से समझ पाएंगे ।

भारतीय चट्टानों का वर्गीकरण

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 भारतीय चट्टानों का वर्गीकरण : भूगर्भिक सरंचना के अनुसार भारत को तीन स्पष्ट भागों बाँटा मे जा सकता है –

( अ ). दक्षिण का प्रयद्वीपीय पठार 

 (ब )उत्तर की विशाल पर्वतमाला 

(स ). उत्तर भारत का विशाल मैदानी भाग 

(अ ) दक्षिण का प्रयद्वीपीय पठार

  भारतीय चट्टानों का वर्गीकरण : भारतीय चट्टानों का विस्तार इसी प्रयद्वीपीय भागों मे ज्यादातर है |यह गोंडवानालैंड का ही एक भाग है ,जो भारत ही नहीं विश्व की प्राचीनतम चट्टानों से निर्मित है। 

प्री -कैम्बियन काल  के बाद से ही यह भाग कभी समुद्र के नीचे नहीं गया |यह आर्कियन युग किचट्टानों से निर्मित है ,जो अब नीस व शिष्ट के रूप मे अत्यधिक रूपांतरित है |

  भारतीय चट्टानों का वर्गीकरण : प्रयद्वीपीय भारत मे भारतीय चट्टानों का क्रम निम्न प्रकार से मिलता है –

चट्टानों का वर्गीकरण

(A). आर्कियन क्रम की चट्टाने –

  • यह अत्यधिक प्राचीनतम चट्टान है |
  • यह चट्टान नीस व सिस्ट के रूप मे रूपांतरित हो चुकी है |
  • बुंदेलखंड और बेल्लारी नीस भी इनमे सबसे प्राचीन है |
  • बंगाल व नीलगिरी नीस भी इन चट्टानों के उदाहरण है

(B) धारवाड़ क्रम की चट्टाने –

  • ये चट्टाने परतदार होती है ,जो आर्कियन क्रम के प्राथमिक चट्टानों के अपरदन व विक्षेपण से बनी होती है |
  • अत्यधिक रूपांतरित होने के कारण इसमे जीवाश्म नहीं पाए जाते है |
  • कर्नाटक के धारवाड़ एवं बेल्लारी जिला अरवली श्रेणीया ,बालाघाट, रीवा ,छोटानागपुर ,आदि क्षेत्रों मे यह चट्टाने मिलती है |
  • भारत के सर्वाधिक खनिज भंडार इसी क्रम की चट्टानों मे मिलते है |,इसलीय इस चट्टान को समृद्ध चट्टान भी कहा जाता है |
  • लौह अयस्क ,तांबा ,सोना ,जस्ता ,क्रोमियम ,टंगस्टन आदि खनिज पदार्थ मिलते है |

(C). कुड़प्पा क्रम की चट्टान –

  • इस क्रम की चट्टान का निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है |
  • इसमे भी जीवाश्म का अभाव होता है |
  • कृष्णा घाटी , नल्लामलाई पहाड़ी क्षेत्र ,पापघनी व चेयर घाटी आदि मे यह चट्टान  मिलती है |

(D) विंध्य क्रम की चट्टान 

  • कुडप्पा क्रम की चट्टानों के बाद इन चट्टानों का निर्माण हुआ है
  • इनका विस्तार राजस्थान के चितोड़ गढ़ से बिहार के सासाराम क्षेत्र तक हुआ है|
  • इसमे बलुवा पत्थर व संगमरमर प्राप्त होता |
  • मध्य प्रदेश के विंध्य क्रम की चट्टान मे पन्ना की खान से हीरा प्राप्त होता है |
  • आंध्रप्रदेश के गोलकुंडा खान से भी |

(E) गोंडवाना क्रम की चट्टान –

  • चट्टान ऊपरी कार्बोनीफेरस युग से लेकर जुरैसिक युग तक इन चट्टानों का निर्माण अधिक हुआ है |
  • यह चट्टान कोयला के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है,भारत का 98% कोयला गोंडवानाक्रम की चट्टानों से मिलता है |
  • यह चट्टान परतदार है ,इसमे मछलियों व रेगने वाले जीवों के अवशेष मिलते है |
  • झारखंड मे दामोदर नदी घाटी मे झरिया कोयला खान |
  • उड़ीसा मे महानदी तलछत कोयला खान |
  • आंध्र प्रदेश मे गोदावरी नदी की घाटी सिंगरौनी कोयला खान है |

( F) दक्कन ट्रैप की चट्टान –

  • इसका निर्माण मेसओजोइक महाकल्प के किर्टेशियस कल्प मे हुआ था|
  • विदर्भ क्षेत्र मे ज्वालामुखी के दरारी उद्भेदन से लावा के वृहद उद्गार से हुआ है|
  • इस क्षेत्र मे 600 से 1500 मी एवं कही -कही 3000 मी की मोटाई तक बैसाल्टीक लावा का जमाव मिलता है |
  • यह प्रदेश दक्कन ट्रैप कहलाता है |
  • राजमहल ट्रैप का निर्माण इससे भी पहले जुरैसिक कल्प मे हुआ था |

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