मेरे प्रिय दोस्तों इस लेख में हम आपको Jwalamukhi Kise Kahate Hain की सम्पूर्ण जानकारी दूंगा, जैसे-उत्पत्ति, प्रकार, स्थलाकृति, प्रभाव एवं लाभ-हानि आदि, जो आपके प्रतियोगी परीक्षा के लिए बहुत ही मददगार साबित होगा। वर्तमान समय में परीक्षा का ट्रेंड समय-समय पर बदल रहा है। ज्वालामुखी से संबंधित परीक्षा में यदि में कोई सवाल आता है, तो वह आप से वंचित नहीं रहेगा। परीक्षा की तैयारी के लिए आपको अन्य पोर्टल पर जाकर पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अब आप इस लेख को बहुत ही ध्यानपूर्वक पढ़ना।
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ज्वालामुखी किसे कहते है ?(Jwalamukhi Kise Kahate Hain)
धरातल का वह छिद्र या विवर है, जिससे लावा, राख, गैस एवं जलवाष्प का उद्गार होकर भूमि पर आता है, उसे ज्वालामुखी कहा जाता है। ज्वालामुखी क्रिया के अंतर्गत भूमि के आंतरिक भाग में मैग्मा एवं गैस के उत्पन्न होने से लेकर भू – पटल के नीचे व् ऊपर लावा के प्रकट होना एवं शीतल व् ठोस होने की समस्त प्रक्रियाएं शामिल होती है।
ज्वालामुखी की उत्पत्ति
धरातल के गर्भ में तापमान जब अधिक हो जाता है। अधिक तापमान होने के कारण वहाँ पर पायें जाने वाले रेडियोएक्टिव तत्वों का विघटन रासायनिक प्रक्रिया एवं ऊपरी दबाव के कारण होता है। जिसके कारण अधिक गहराई पर पदार्थ पिघलने लगता है। जो धरातल के कमजोर भाग को तोड़कर बाहर निकलने लगता है, जिसके कारण ज्वालामुखी की उत्पत्ति होती यही।
ज्वालामुखी की उत्पत्ति के कारण:
- भू-पृष्ठ के गर्भ का तापमन अधिक होना।
- रेडियोएक्टिव पदार्थों का विघटन होना।
- ऊपरी दबाव के कारण ।
- भू- गर्भ के पदार्थों का पिघलना।
ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ
ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ को तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है, जो निम्न प्रकार से है –
1. गैस एवं जलवाष्प
ज्वालामुखी उद्भेदन के समय सबसे पहले गैस एवं जलवाष्प बाहर निकलते है। जिसमें जलवाष्प की मात्रा अधिक (60-90)% होती है। तथा शेष गैसों में कार्बनडाइऑक्साइड(CO2), नाइट्रोजन (N2) एवं सल्फरडाइऑक्साइड (SO2) है।
2. विखंडित पदार्थ
इसके अंतर्गत धूल तथा राख से निर्मित चट्टानी टुकड़े (टफ) मटर के दाने के आकार वाले टुकड़े (लैपिली) कुछ इंच से लेकर की फिट व्यास वाले बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े एवं अपेक्षाकृत बड़े आकार के टुकड़े (ब्रेसिया) आदि सब धरातल पर निकल आते है।
3. लावा
ज्वालामुखी उद्गार के समय धरातल के गर्भ में स्थित तरल पदार्थ को मैग्मा कहा जाता है। जब मैग्मा धरातल पर आता है तो उसे लावा कहा जाता है। धरातल पर जब लावा ठंडा होता है, तो वह अग्ने चट्टान कहलाता है।
Jwalamukhi Kise Kahate Hain के अंतर्गत सिलिका के आधार पर लावा दो प्रकार के होता है
- एसिड लावा – इस प्रकार का लावा बहुत ही गाढ़ा होता है। क्योंकि इसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। यह अधिक दूर तक न फैलकर क्रेटर कर निकट ही गुम्बदाकार शंकु का निर्माण करता है। जैसे – स्ट्रामबोली (इटली) तथा पाई डी डोम (फ्रांस) आदि।
- बेसिक लावा – यह लावा हल्का,पतला एवं धरातल जल्दी ही फैल जाता है। यह भी सिलिका से युक्त होता है, इससे शील्ड शंकु या चपटा शंकु का निर्माण होता है। जैसे- मौनालोआ शंकु (हवाई द्वीप)।
ज्वालामुखी से निकलने वाली गैस
ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसों में कार्बनडाइऑक्साइड(CO2), नाइट्रोजन (N2) एवं सल्फरडाइऑक्साइड (SO2) है आदि गैसें होती है।
ज्वालामुखी के अंगों के नाम बताओ
ज्वालामुखी के प्रमुख अंग का निर्माण जवालामुखी के निर्माण के समय उसमें स्थित मैग्मा, आधार शैल, नाली, सिल, डाइक, ज्वालामुखी द्वारा निकली गई राख, लावा, विवर आदि है।
ज्वालामुखी के प्रकार
ज्वालामुखी को उद्भेदन एवं सक्रियता के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जाता है
1. उद्भेदन के आधार पर
2. सक्रियता के आधार पर
उद्भेदन के आधार पर
ज्वालामुखी लावा के उद्गार की घटती तीव्रता के आधार पर ज्वालामुखी शंकुओं को पीलियन (Pelean), बोलकैनियन (Vulcanian), स्ट्रमाबोलियन (Strombolian), हवाईयन (Hawaiian) एवं विसुवियस (Vesuvius)।
पीलियन (Pelean) ज्वालामुखी
यह ज्वालामुखी सबसे अधिक विस्फोटक एवं विनाशकारी होता है। सिलिका की मात्रा ज्यादा होने के कारण मैग्मा अत्यधिक अम्लीय एवं चिपचिपा होता है। इसमें प्रत्येक अगला उद्गार पिछले से निर्मित ज्वालामुखी शंकु को प्रायः तोड़ते हुए होता है।
उदाहरण के लिए जैसे-: मार्टिनिक द्वीप में माउंट पीली, सुमात्रा व् जावा के पास क्राकाटाओ एवं फिलीपींस में माउंट ताल।
बोलकैनियन (Vulcanian) ज्वालामुखी
इस ज्वालामुखी के अंतर्गत अम्लीय से लेकर क्षारीय तक प्रत्येक प्रकार के मैग्मा का उद्गार होता है। गैसों के अत्यधिक निष्कासन के कारण प्रायः फूलगोभी के आकार के ज्वालामुखी मेघ दूर तक फ़ाइल जाते है । जैसे – विसुवियस प्रकार के ज्वालामुखी को इसी वर्ग में रखा गया है।
स्ट्रामबोलियन (Strombolian)
स्ट्रमाबोलियन ज्वालामुखी में अमल की मात्रा कुछ कम रहती है, तथ गैसों का प्रवाह मार्ग में रुकावट न हो तो सामान्यतः इसमें विस्फोटक उद्गार नहीं होता है।
हवाईयन (Hawaiian)
हवाईयन ज्वालामुखी का उद्गार अत्यंत शांत होता है। क्योंकि इससे निकलने वाला लावा तरल एवं क्षारीय होता है। जिससे यह दूर तक फैलकर जमा हो जाता है। ज्वालामुखी शंकु कम ऊंचाई का तथा दूर तक फ़ाइल हुआ होता है।
विसुवियस (Vesuvius)
विसुवियस ज्वालामुखी में उद्गार बहुत ही विस्फोटक के साथ होता है। इसमें लावा के साथ गैसों का सम्मिश्रण अधिक होता है इसकी बनावट फूल गोभी की तरह होती है। इसका प्रमुख उदाहरण है- माउंट सोमा
सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी के प्रकार
सक्रियता के आधार ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते है, 1. सक्रिय ज्वालामुखी 2. सुषुप्त ज्वालामुखी 3. मृत ज्वालामुखी
सक्रिय ज्वालामुखी
ऐसे ज्वालामुखी जिनसे लावा, गैस एवं विखंडित पदार्थ हमेशा निकल करते है। सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते है। वर्तमान समय में सक्रिय ज्वालामुखी की संख्या 500 है।
सक्रिय ज्वालामुखी के उदाहरण जैसे – लिपारी द्वीप का स्ट्रमबोली, इटली का माउंट एटना, ईक्वेडोर का कोटापैकसी , अंटार्कटिका का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी माउंट एर्बुश (इरेबस), जापान का फ्यूजियामा, अंडमान-निकोबार का के बैरन द्वीप सक्रिय ज्वालामुखी के उदाहरण है।
सुषुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano)
यह ज्वालामुखी काफी समय से सक्रिय नहीं है। लेकिन कभी-कभी सक्रिय हो सकते है। जैसे इटली विसुवियस, इंडोनेशिया का क्राकटाओ एवं अंडमान निकोबार का नारकोंडम का स्थित ज्वालामुखी जो दिसंबर – 2004 के सुनामी के पश्चात इसमें सक्रियता के लक्षण दिखाई पड़े है।
मृत ज्वालामुखी (Dead Volcano)
ऐसे ज्वालामुखी जो जिनमे हजारों वर्षों से कोई भी उद्भेदन न हुआ हो। तथा भविष्य में इसकी कोई संभावना न हो। जैसे अफ्रीका के पूर्वी भाग में स्थित तंजानिया का किलिमंजारो, इक्वेडोर का चिमबोराजों, म्यांमार का माउंट पोपा, ईरान का देमबंद व् कोह सुल्तान एवं एंडीज पर्वत श्रेणी का एकांकगुआ इसके प्रमुख उदाहरण।
ज्वालामुखी का विश्व वितरण बताइए
प्लेट विवर्तनिक के आधार पर ज्वालामुखी क्षेत्रों की व्याख्या वर्तमान समय में मान्य संकल्पना है। इसके आधार पर 80% ज्वालामुखी विनाशात्मक प्लेट किनारों पर, 15% रचनात्मक प्लेट किनारों पर,तथा शेष प्लेट के आंतरिक भागों पर पाए जाते है। ज्वालामुखियों का मेखलाबद्ध वितरण पाया जाता है।
परिप्रशांत महसागरिय मेखला
यहाँ विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे ज्वालामुखी मिलते है। विश्व के ज्वालामुखियों का लगभग 2/3 भाग प्रशांत महासागर के डोनो तटीय भागों, द्वीप चापो एवं समुद्री द्वीपों के सहारे पाए जाते है। इसे प्रशांत महासागर का अग्निवल्य (Free ring थे Pacific Ocean) कहा जाता है।
यह पेटी अंटार्कटिका के माउंट इरेबस से प्रारंभ होकर दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला व् उत्तर अमेरिका के रॉकी पर्वतमाला का अनुसरण करते हुए अलास्का, पूर्वी रूस, जापान, फिलीपींस आदि द्वीपों से होते हुए मध्य महाद्वीप पेटी में मिल जाती है।
मध्य महाद्वीपीय पेटी
इस मेखला के अधिकांश ज्वालामुखी विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे मिलते है।, क्योंकि यहाँ यूरेशीयन प्लेट तथा अफ्रीकन व् इंडियन प्लेट का परस्पर अभिसरण होता है।
इसकी एक शाखा अफ्रीका की भ्रू-भ्रंश घाटी एवं दूसरी शाखा स्पेन एवं इटली होते हुए ककेशस व् हिमालय की तरफ आगे बढ़ते हुए दक्षिण की तरफ प्रशांत महसागरिय पेटी से मिल जाती है।
इसका वितरण प्रमुख रूप से अल्पाइन-हिमालय पर्वत शृंखला के साथ फैला हुआ है। भूमध्य सागर के ज्वालामुखी इसी के अंतर्गत आते है, जैसे – स्ट्रमाबोली, विसूसियस,एतना, ईरान का देमबन्द, कोड सुल्तान।
मध्य अटलांटिक मेखला अथवा मध्य सागरीय कटक
ये रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे मिलते है। जहां पर दो प्लेटों के अपसरण के कारण भ्रंश का निर्माण होता है। इसके अंतर्गत हेकल व् लॉकी आइसलैंड के प्रमुख ज्वालामुखी है।
अंतर प्लेटीय ज्वालामुखी
हवाई द्वीप से लेकर कंचटक प्रायद्वीप तक के ज्वालामुखी, पूर्वी अफ्रीका के भू- भ्रंश घाटी के ज्वालामुखी के दरारी उद्भेदन से बने कोलम्बिया स्नैक पठार, प्राण पठार दक्कन ट्राइप व् ड्राइकन्स बर्ग।
ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ (स्थलाकृतियाँ)
ज्वालामुखी के विस्फोट उद्गार से बनने वाली ज्वालामुखी के द्वारा भिन्न- भिन्न आकृतियाँ बनती है, जो निम्न प्रकार की है-
सिंडर शंकु अथवा राख शंकु
इस प्रकार के शंकु प्रायः कम ऊंचाई के होते है, तथ इनके निर्माण में प्रमुख रूप से ज्वालामुखी रख या विखंडित पदार्थ का योगदान रहता है। इसमें तरल पदार्थों का योगदान नहीं रहता है।
इस तरह के शंकु की यह विशेषता होती है की ढाल अवतल होता है, परंतु क्रेटर अधिक चौड़ा होता है। उदाहरण स्वरूप – मैक्सिको में पैराक्यूटिन पर्वत एवं जोरललो पर्वत। सान-सल्वाडोर में इजालकों पर्वत।
लावा शंकु
इस प्रकार के शंकु बनने में अम्लीय से लेकर क्षारीय तक किसी भी प्रकार के तरल मैग्मा के उद्गार की भूमिका होती है। लावा शंकु को पुनः अम्लीय अथवा क्षारीय प्रकार में बाँटा जाता है।
1. अम्लीय लावा शंकु
इस प्रकार के शंकु का निर्माण उस समय होता है, जब ज्वालामुखी में लावा में सिलिका की मात्रा अधिक हो। जिससे वह चिपचिपा व् लसदार अधिक हो जाता है।जिसके कारण अधिक विस्फोटक उद्गार के साथ भूपटल के बाहर प्रकट होता है। इस प्रकार के ज्वालामुखी अधिक ऊंचाई एवं कम क्षेत्रीय विस्तार वाले होते है। जैसे – पीलियन, तुली, वोलकैनियन तुली एवं स्ट्रामबोली।
2. क्षारीय या लावा शंकु
जब ज्वालामुखी लावा में सिलिका की मात्रा कम हो तो वह दूर तक विस्तारित होकर ठंडा हो जात है। इसकी विशेषता यह है की कम ऊंचाई वाला एवं अधिक क्षेत्र वाला होता है। उदाहरण के लिए जैसे – हवाईयन परकर के मौनालोआ ज्वालामुखी।
क्षारीय लावा शंकु शील्ड शंकु भी कहा जाता है।
मिश्रित ज्वालामुखी शंकु
जब ज्वालामुखी के केन्द्रीय उद्गार से अम्लीय से लेकर क्षारीय प्रत्येक प्रकार के लावा का उद्गार हो एवं साथ ही सिंडर व् राख भी ज्वालामुखी उद्गार में शामिल हो जाने से अधिक सुडौल ऊंचे ज्वालामुखी शंकु का निर्माण होता है। जैसे – जापान का फ्यूजियामा, फिलीपींस का मेयान, संयुक्त राज्य अमेरिका का रेनियर, हुड एवं शास्ता। परिपोषित या आश्रित शंकु
जब ज्वालामुखी का विस्तार ज्यादा हो जाता है, तो उनकी प्रमुख नलिकाएं से कभी- कभी विस्फोट के कारण उप नलिकाएं अथवा शाखाएं निकल आती है, इससे ज्वालामुखी के ढाल पर और ज्वालामुखी शंकु बन जाते है। इसे परिपोषित शंकु कहा जाता है। उदाहरण के लिए जैसे – संयुक्त राज्य अमेरिका में माउंट शस्तिना, माउंट शास्ता का ही एक परिपोषित शंकु है।
ज्वालामुखी द्वारा बनने वाली अन्य स्थलाकृतियाँ
लावा डॉट
जब ज्वालामुखी शंकु का विवर ज्वालामुखी लावा से भर जाता है तो इसे लावा डॉट कहा जाता है। इसे प्लग डॉट भी कहा जाता है।
ज्वालामुखी ग्रीवा
नलिका में जमी हुई लावा पट्टी ज्वालामुखी ग्रीवा कहा जाताा है। जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका का ब्लैक हिल्स एवं डेविल टावर।
डायट्रेम
लावा डॉट एवं ज्वालामुखी ग्रीवा के संयुक्त स्थल को डायट्रेम कहा जाता है। जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका का न्यू मैक्सिको में शिप रॉक।
क्रेटर
क्रेटर का निर्माण जब पहला ज्वालामुखी उद्गार पिछले उद्गार से कम तीव्र हो तो इसे क्रेटर कहा जाता है। इस तरह के क्रेटर को घोंसला दार क्रेटर कहा जाता है। फिलीपींस के माउंट ताल।
क्रेटर की विशेषता यह है की इसके क्रेटर में जल भर जाए तो यह झील बन जाता है। जैसे महाराष्ट्र के बुलढाना जिले में लोनार झील।
कॉलडेरा
यह क्रेटर का विस्तृत रूप है। यह क्रेटर में धसाव या विस्फोटक उद्गार से निर्मित स्थलरूप है।
उषणत्वों या गीजर
इसमें समय- समय पर गरम जल की फुहारें निकलती रहती है। यह गरम जल के झरनों से भिन्न है। इसका ज्वालामुखी प्रमुख रूप से संबंध होता है। गीजर का उदाहरण जैसे – संयुक्त राज्य अमेरिका के यलोस्टोन नेशनल पार्क में स्थित ओल्ड फेथफुल गीजर एवं आइसलैंड का गीजर भी विख्यात है।
धुआरें
यह ज्वालामुखी क्रिया की आखिरी स्थिति का प्रतीक है । इसमें जलवाष्प एवं गैस निकला करते है। जैसे गंधक युक्त धुआरें को सोलफतारा कहा जता है।
अलास्का
अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका) के कटमई पर्वत को दस हजार धुऔरों की घाटी होगी। ईरान का कोह सुल्तान धुआरा तथा न्यूजीलैंड की प्लेनती में स्थित हवाई द्वीप का धुआरा भी प्रसिद्धि है।
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Jwalamukhi Kise Kahate Hain : ज्वालामुखी का मानव जीवन पर प्रभाव
ज्वालामुखी के धूलकण वातावरण के क्षेत्र को अपारदर्शी कर देता है। इस कारण से वायु परिवहन का संचरण अवरुद्ध होने लगता है। श्वशन रोग बढ़ने लगता है। सूर्य का ताप भी धरातल तक पूरी तरह से नहीं पहुँच पाती है।
ज्वालामुखी के लाभ और हानि
लाभ
ज्वालामुखी के कारण वातावरण की कम गर्मी सोखी जाती है। जिससे प्लानेट का तापमान कम हो जात है। इस पूरी प्रक्रिया को ग्लोबल डिमिन्ग कहा जाता है। इसके अतिरिक्त ज्वालामुखी लावा से बहुत ही कीमती चीजें मिलती है। जैसे मिनिरल्स, पत्थर आदि।
हानी
ज्वालामुखी से धन का नुकसान होता है। वातावरण दूषित होता है। वायु का परिवहन बाधित होता है।
विश्व के प्रमुख ज्वालामुखी कौन से है?
नाम | देश | ऊंचाई (मीटर में ) |
---|---|---|
कोटापैक्सी | इक्वाडोर | 5897 |
क्लूचेवस्कया | रूस | 4688 |
ब्रेनगेल पर्वत | अलास्का (USA) | 4317 |
मौना लोआ | हवाई (USA) | 4170 |
कैमरून | कैमरून | 4070 |
इरेबस | अंटार्कटिका | 3795 |
निरागोंगों | डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो | 3470 |
इलिआमना | अलेतूआन श्रेणी (USA) | 3053 |
एटना | सिसली | 3340 |
माउंट बेकर | कॉसकेड श्रेणी (USA) | 3285 |
चिललन | चिली | 3200 |
माउंटन्यामुरागीरा | कांगो | 3090 |
विल्लारीका | चिली | 2842 |
माउंटरूहापेहू | न्यूजीलैंड | 2797 |
पोरक | मैक्सिको | 2800 |
असामा | जापान | 2540 |
सेंट हेलेन्स पर्वत | संयुक्त राज्य अमेरिका | 2530 |
हंबला | आइसलैंड | 1491 |
विसुवियस | इटली | 1277 |
किलाउएआ | हवाई (USA) | 1225 |
स्ट्रामबोली | इटली (लिपारी द्वीप ) | 925 |
ज्वालामुखी से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
- ज्वालामुखी बम (Volcanic Bomb)– ज्वालामुखी उद्गार से निकले चट्टान के बड़े-बड़े टुकड़ों को ज्वालामुखी बम कहा जाता है।
- लैपिली (Lapilli)- ज्वालामुखी के वे टुकड़े जो मटर के दाने या अखरोट के बराबर होते है, उन्हें लैपिली कहा जाता है।
- प्युमिस (Pumice)– चट्टानी टुकड़ों का घनत्व जल से कम होता है। जिसके कारण वे जल में तैरते है।
- धूल या राख (Dust or Ash)- ज्वालामुखी उद्गार के अंतर्गत चट्टानी टुकड़ों से निकलने बहुत ही महीन कण को धूल या राख कहा जाता है।
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